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आखिर क्यों मनाया जाता है मकर संक्रांति का त्योहार क्या है मान्यता

PNN/Faridabad: मकर संक्रांति के साथ ही कुंभ का महापर्व शुरू होने वाला है। भारत में सभी जगह इस त्योहार को बड़े ही हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता हैं। यूं तो प्रति मास ही सूर्य बारह राशियों में एक से दूसरी राशि में प्रवेश करता है। सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करने को संक्रमण या संक्रांति कहा जाता है। ज्योतिषीय मान्यता है कि पौष मास में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तो उस विशेष काल को ही मकर संक्रांति कहते हैं। 

महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को ही चुना था, क्योंकि मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं, इसलिए संक्रांति मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

2012 से मकर संक्रांति की तिथि को लेकर उलझन की स्थिति बनती चली आ रही है। पिछले कुछ वर्षों में मकर संक्रांति की तिथि को लेकर काफी उहापोह की स्थिति बनी रहती है। साल 2019 में भी कुछ इसी तरह की स्थिति बनी हुई है। हालांकि इस साल मकर संक्रांति 15 जनवरी को है। सोमवार (14 जनवरी) की मध्य रात्रि में सूर्य का मकर में संक्रमण होगा जबकि मंगलवार 15 जनवरी को 12 बजे से पुण्यकाल है। इसलिए मंगलवार की सुबह से ही संक्रांति स्नान, दान शुरू हो जायेगा। 14 जनवरी को शाम 7:53 बजे सूर्य देव धनु से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। चूंकि सूर्य का राशि परिवर्तन सूर्यास्त के बाद होगा, इसके चलते पुण्यकाल और मकर संक्रांति के तहत 15 जनवरी को दान पुण्य का दौर होगा। मकर संक्रांति के साथ ही सूर्य दक्षिमायण से उत्तरायण हो जाएंगे। शास्त्रों के नियम के अनुसार रात में संक्रांति होने पर अगले दिन संक्रांति मनाई जाती है। इस नियम के अनुसार ही इस बार संक्रांति 14 नहीं 15 जनवरी को मनाई जाएगी। 

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Shafi-Author

Shafi Shiddique