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…तो इस कारण टल सकती है शबनम की फांसी

Shabnam hanging

PNN/ Delhi: यूपी में अमरोहा जिले के बावनखेड़ी नरसंहार को जिस प्रेमी सलीम के साथ मिलकर शबनम ने अंजाम दिया था, वही प्रेमी अब शबनम की फांसी टलवाने में भी मददगार बन सकता है.

फांसी की सजा पा चुकी शबनम का डेथ वारंट कभी भी आ सकता है. इसके बाद उसे फांसी दे दी जायेगी. उसकी दया याचिका को राष्ट्रपति ने भी खारिज कर दिया है. शबनम के साथ साथ उसके प्रेमी सलीम की भी दया याचिका को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया है. मथुरा जेल में शबनम को फांसी देने की तैयारी की जा रही है बस उसके डेथ वारंट का इंतजार है.
बताया जा रहा है कि सलीम की पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. सुप्रीम कोर्ट में सलीम के पेंडिंग पड़े रिव्यु पीटीशन को आधार बनाकर शबनम अपनी फांसी को टालने के लिए फिर से हाईकोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दायर कर सकती है. अगर कोर्ट शबनम की पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लेता है तो उसकी फांसी कुछ दिनों के लिए टल सकती है.

शबनम के वकील शमशेर सैफी की माने तो सेशन कोर्ट से ही शबनम सैफी और सलीम पठान की फाइल एक साथ आगे बढ़ी है. कोर्ट ने एक साथ दोनों को फांसी की सजा सुनाई है. इसके बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी दोनों की फाइल एक साथ थी. राष्ट्ररपति ने एक साथ दोनों की दया याचिका खारिज की. पर सुप्रीम कोर्ट में शबनम की पुनर्विचार याचिका खारिज हो गयी पर सलीम की याचिका अभी भी विचाराधीन है. इसलिए अगर शबनम का डेथ वारंट आने तक अगर सलीम की याचिका विचाराधीन ही रहती है तब भी शबनम हाईकोर्ट जा सकती है. क्योंकि दोनों को एक ही जुर्म के लिए फांसी की सजा सुनाई गयी है.

अमरोहा जिले के हसनपुर क्षेत्र के गांव बावनखेड़ी के शिक्षक शौकत अली की इकलौती बेटी शबनम के सलीम के साथ प्रेम संबंध थे. सूफी परिवार की शबनम ने अंग्रेजी और भूगोल में एमए की थी. उसके परिवार के पास काफी जमीन थी. वहीं सलीम पांचवीं फेल था और पेशे से एक मजदूर था. दोनों के संबंधों को लेकर परिजन विरोध कर रहे थे. ऐसे में शबनम ने 14 अप्रैल, 2008 की रात अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने माता-पिता और 10 माह के भतीजे समेत परिवार के सात लोगों को पहले बेहोश करने की दवा खिलायी. बाद में सभी को कुल्हाड़ी से काटकर मार डाला था.

शबनम और सलीम के केस में 100 तारीखों तक बहस हुई थी. इसमें 29 गवाहों ने शबनम सलीम के खिलाफ गवाह दिया है. इस मामले की सुनवाई 27 महीनों तक चली थी. इसके बाद 14 जुलाई 2010 शबनम और सलीम दोषी करार दिए गए. 15 जुलाई 2010 को दोनों को सुनाई फांसी की सजा गई. इस केस में गवाहों से 649 सवाल किये गये थे. 160 पेज में सजा सुनाई गयी है. शबनम सलीम के केस की सुनवाई तीन जिला जजों के कार्यकाल में पूरी हुई. कहा जाता है कि जिला जज एसएए हुसैनी ने 29 सेंकेड में फांसी की सजा सुनाई थी.

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